बेबीकॉर्न व स्वीटकॉर्न की आधुनिक खेती से विदेशी मुद्रा कमा सकते हैं किसान : प्रोफेसर समर सिंह

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह ने कहा - कम समय में ज्यादा मुनाफा देती हैं ये फसलें
हिसार : 4 अगस्त 2020
प्रदेश में भूमिगत जलस्तर निरंतर नीचे जा रहा है। इसका मुख्य कारण गेहूं-धान फसल चक्र है, जिससे भूमिगत जल का अत्याधिक दोहन हुआ है, जो भविष्य में गहरे संकट की ओर इशारा है। इसके समाधान के लिए फसल चक्र में बदलाव आवश्यक है। उपरोक्त समस्या के मद्देनजर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह ने किसानों को सलाह दी कि मक्का इस फसल चक्र में विशेष योगदान दे सकता है।


फोटो : कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह


उन्होंने बताया कि मक्का कई प्रकार का होता है, जिसमें साधारण मक्का, उच्च गुणवत्ता मक्का और बेबीकार्न व स्वीटकॉर्न। साधारण मक्का की तुलना में बेबीकार्न व स्वीटकॉर्न कम समय में तैयार हो जाती है और इससे किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। साथ ही इसको विदेशों में निर्यात करके विदेशी मुद्रा भी कमा सकते हैं। कुलपति महोदय के अनुसार बेबीकॉर्न की उपज, किस्मों की क्षमता व मौसम पर निर्भर करती है। बेबीकॉर्न की काश्त करने पर प्रति एकड़ किसान 6-7 क्विंटल बेबीकॉर्न व 80-100 क्विंटल प्रति एकड़ हरा-चारा लिया जा सकता है। इसलिए यह फसल विविधिकरण फसल चक्र में बदलाव व पशुपालन व्यवसाय में काफी लाभदायक हो सकता है।
दिसंबर व जनवरी को छोडक़र पूरे साल खेती कर सकते हैं किसान
अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि किसान बेबीकॉर्न की खेती दिसंबर व जनवरी माह को छोडक़र पूरे साल कर सकते हैं। इसकी बिजाई 20 जून से लेकर 15 सितम्बर, 25 अक्तुबर से 20 नवम्बर, 25 जनवरी से फरवरी के अंत तक की जा सकती है। इसलिए यह फसल विविधिकरण, फसल चक में बदलाव व पशुपालन व्यवसाय में काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है। यह फसल कम समय मे अच्छा मुनाफा देती है। उन्होंने सलाह दी कि किसान ग्रामीण क्षेत्र में इसके प्रसंस्करण उद्योग लगाकर अपनी आय सुनिश्चित कर सकते हैं और विदेशों में निर्यात करके विदेशी मुद्रा भी कमा सकते हैं।
कीटनाशकों के प्रभाव से होती है मुक्त
उन्होंने बताया कि दाना बनने से पहले भुट्टे को बेबीकार्न या शिशु मक्का कहा जाता है। इसकी लंबाई 7-10 सैं.मी. व रंग क्रीमी होता है। बेबीकॉर्न आसानी से पचाई जा सकती है। पत्तों में लिपटी होने के कारण यह कीटनाशक दवाइयों के प्रभाव से मुक्त होती है। इसमें फॉस्फोरस, प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा व विटामिन भी पाए जाते हंै।
संकर किस्मों से वर्ष में ले सकते हैं तीन से चार फसलें
डॉ. मेहरचंद कंबोज के अनुसार किसान बेबीकार्न की संकर किस्में एच.एम. 4 व अन्य जल्दी पकने वाली संकर किस्में अच्छी रहती हैं। वर्ष मे बेबीकॉर्न की 3-4 फसलें ली जा सकती हैं। इसकी बिजाई मेढ़ों पर या लाइनों में करनी चाहिए। मेढ़ से मेढ़ की दूरी 60 सैं.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 15 सैं.मी. होनी चाहिए। इसके अलावा इसकी फसल में खाद के रूप में डी.ए.पी. 52 किलोग्राम, यूरिया 110 किलोग्राम, एम.ओ.पी. 40 किलोग्राम व जिंक सल्फेट 10 (कि.ग्रा./एकड़) उपयुक्त रहती है। डी.ए.पी. व एम.ओ.पी. की पूरी मात्रा व यूरिया का एक तिहाई भाग खेत की तैयारी के समय तथा एक तिहाई भाग फसल के घुटनों की ऊंचाई के समय तथा शेष एक तिहाई भाग फसल के झंडे आने की अवस्था में दें।
खरपतवार नियंत्रण, सिंचाई व बीज की मात्रा के लिए बरतें सावधानी
डॉ. धर्मबीर यादव ने बताया कि बेबीकोर्न की काश्त के लिए प्रति एकड़ 10 से 12 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है।
बिजाई के तुरंत बाद 600 ग्राम एट्राजिन 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिडक़ाव करने से अधिकतर खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। आवश्यकतानुसार एक बार खुरपे व कसोले से गुड़ाई करनी चाहिए। ज्यादा खरपतवार होने पर 10-25 दिन बाद टेम्बोट्राइन 115 मि.ली., 400 मि.ली. सरफेक्टेन्ट को 200 लीटर पानी में मिलाकर फलैट फैन नोजल से छिडकाव करें। उन्होंने बताया कि मौसम व फसल की जरुरत के अनुसार 3 से 5 सिंचाई की जरूरत होती है । पहली सिंचाई 20 दिन बाद, दूसरी घुटने की ऊंचार्ई के समय व तीसरी झण्डे आने से पहले करें। इसके अलावा फसल को बिमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम व कीडों से बचाने के लिए इमीरडाक्लोपरिड (कान्फीडोर) 7 मि.ली. दवाई प्रति किलोग्राम बीज को बिजाई से 4-5 घंटे पहले उपचारित करें। उन्होंने बताया कि खरीफ मौसम में पत्ता अंगमारी की रोकथाम के लिए 600 ग्राम मैन्कोजेब या जीनेब को 200 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकङ छिडकाव करें । तना सडऩ को रोकने के लिए 100 लीटर पानी में 150 ग्राम कैप्टान और 33 ग्राम स्टैबल ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर जड़ों पर डालें। तना छेदक मक्का फसल का सबसे हानिकारक कीट है। इसकी रोकथाम के लिए 200 ग्राम कार्बेरिल (सेविन/हैक्साविन/कार्बेविन) 50 घु.पा. को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 20 दिन बाद गोभ मे छिडकाव करें।
बेबीकार्न की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नरमंजरी (झंडा) निकालना जरूरी
बेबीकॉनऱ़् की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए नरमंजरी (झण्डे) निकालना बहुत जरूरी है। झण्डा दिखाई देते ही इसे तुरन्त हटा देना चाहिए। ध्यान रहे कि इस दौरान पत्ते नहीं हटने चाहिए। हटाए गए झण्डों को पशुओं के चारे के तौर पर खिलाना चाहिए क्योंकि इसमें बहुत पौषक तत्व विद्यमान होते हैं।
बेबीकार्न की शाम के समय करें तुड़ाई
उन्होंने बताया कि किसान बेबीकॉर्न की गुल्ली को 3-4 सैं.मी. रेशमी कोंपलें आने पर तोड़ लें। बेबीकॉर्न तोड़ते समय ऊपर की पत्तियां नहीं हटानी चाहिए। पत्तियां हटने से यह जल्दी खराब हो जाती है। तोडऩे के तुरन्त बाद इसे मण्डी अथवा संसाधन इकाई पर पहुंचा देना चाहिए। बेबीकॉर्न को शाम को ही तोडें। छिलाई ठण्डी जगह पर करें और इसके ऊपर का छिलका पशुओं को खिला दें। बेबीकॉर्न से मुनाफा इसकी गुणवत्ता व भाव पर निर्भर करता है।  दानें वाली फसलों की तुलना में बेबीकॉर्न से कम समय में अधिक लाभ लिया जा सकता है। अधिक मुनाफे के लिए बेबीकॉर्न व स्वीटकॉर्न की खेती के साथ-साथ दूसरी फसलें उगाई जा सकती हैं।
ये बनते हैं मुख्य व्यंजन
बेबीकॉर्न का प्रयोग दोनों प्रकार से कच्ची व पकाकर किया जा सकता है। इसका उपयोग मुख्यत: 30-40 व्यजंन के रूप में किया जा सकता है। इनमें सब्जी, सलाद, मुरब्बा, सूप, चटनी, टिक्की, अचार, कौफता, हलवा, बर्फी, जैम, लड्डू, भुजिया, खीर, सॉस, कटलेट, चाट, मनचूरियन, पीजा, सैंडविच, वड़ा, उपमा, आमलेट, चिल्ला, कॉर्न उत्पम, सांभर, फू्रटक्रीम, बेबीकॉर्न पुलाव इत्यादि शामिल हैं। साधारण मक्का में चीनी की मात्रा लगभग 3 प्रतिशत् होती है जबकि स्वीटकॉर्न में यह लगभग 7 प्रतिशत् या इसमे अधिक होती है। दाने के ऊपर का छिलका बहुत ही नरम होने की वजह से स्वीटकॉर्न बहुत ही स्वादिष्ट होती है। स्वीटकॉर्न को कच्चा, भून कर या उबाल कर खाया जा सकता है। यह सब्जी, सूप एवं अनेक पकवान जैसे स्वीटकॉर्न मिल्क, केक, क्रीम, पिज्जा आदि उत्पाद बनाने में उपयोग होता है। इसकी हरी छल्ली तोडऩे के बाद पौधे को काट कर हरे चारे के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन कर सकते हैं किसान
ग्रामीण क्षेत्रों में किसान समूह बना कर बेबीकार्न व स्वीटकॉर्न मक्का आधिरत उद्योग स्थापित करके किसान न केवल खुद को बल्कि दूसरों को भी रोजगार देने का काम कर सकते हैं। इन उत्पादों को न केवल देश में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है बल्कि विदेशों में निर्यात कर विदेशी मुद्रा भी अर्जित की जा सकती है।