कपास की फसल के लिए खरपतवारनाशी 2, 4-डी का प्रयोग घातक : प्रोफेसर के.पी. सिंह

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति ने दी किसानों को हिदायत


हिसार : 4 जुलाई 2020
कपास की फसल के लिए खरपतवारनाशी 2, 4 डी का प्रयोग घातक है। इसलिए इसके प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए। ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के.पी. सिंह ने किसानों को हिदायत देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि खरपतवारनाशी 2,4-डी के  प्रभाव से कपास की पत्तियों में हथेली जैसा बारीक कटाव आ जाता है, जिसे बंदर पंजा भी कहते हैं।  इसमें पौधे से फूल गिर जाते हैं और टिण्डे नहीं बनते। इसलिए किसान ध्यान रखें कि जिस स्प्रेयर से 2, 4-डी प्रयोग में लाया गया हो, उसे बीमारी व कीड़े मारने वाली दवाओं के छिडक़ाव के लिए प्रयोग में न लाएं। साथ ही 2, 4-डी का संपर्क कपास की फसल में प्रयोग में लाए जाने वाले कीटनाशकों और फफूंदनाशकों के साथ न होने पाए। उन्होंने कहा कि कीट या फफूंदनाशकों के छिडक़ाव के लिए घोल बनाने से पूर्व बोतल या टीन का लेबल ध्यान से देख लें। 2, 4-डी से प्रभावित पौधों की समस्या हो जाने पर प्रभावित कोंपलों को 15 सैं.मी. काट दें और इसके बाद 2.5 प्रतिशत यूरिया तथा 0.5 प्रतिशत जि़ंक सल्फेट के घोल का छिडक़ाव करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली गोड़ाई पहली सिंचाई से पहले कसौला से करें। बाद में हर सिंचाई के बाद समायोज्य कल्टीवेटर से निराई-गोड़ाई करें। पहली सिंचाई जितनी देर से की जाए अच्छी है। आमतौर पर बिजाई के 40-45 दिन बाद सिंचाई करें।
कपास की बिजाई देरी से की हो तो इसी सप्ताह करें सिंचाई
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि यदि कपास की बिजाई किसी कारण देर से की हो तो जुलाई के पहले सप्ताह में फसल को पानी लगाएं तथा फालतू पौधों को निकाल दें जिससे कि एक कतार में पौधे से पौधे का फासला सामान्य किस्मों के लिए 30 सैं.मी. जबकि संकर किस्मों के लिए 60 सेंटीमीटर रह जाए। कृषि वैज्ञानिक व कपास फसल पर रिसर्च कर रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने बताया कि कोणदार धब्बों से बचाव हेतु जुलाई के पहले सप्ताह में 6-8 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन व कॉपर ऑक्सीक्लोराईड (600-800 ग्राम प्रति एकड़) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर 15-20 दिन के अंतर पर लगभग 4 छिडक़ाव करें। जड़ गलन बीमारी से बचाव के लिए किसान 2 ग्राम कार्बंैंडाजिम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 500 मिलीलीटर प्रति स्वस्थ पौधे की जड़ में डालें व सुखे हुए पौधों को खेत से उखाड़ कर जला दें। नरमा में नाइट्रोजन 35 कि.ग्रा., फास्फोरस 12 कि.ग्रा., देसी कपास में नाइट्रोजन 20 कि.ग्रा. व संकर कपास में नाइट्रोजन 70 कि.ग्रा., फास्फोरस 24 कि.ग्रा. व पोटाश 24 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की सिफारिश है। सामान्य किस्मों में नाइट्रोजन की खाद आधी बौकी आने (जुलाई-अंत) के समय तथा आधी फूल आने के समय डालें। संकर किस्मों में इन दोनों समय पर नाइट्रोजन 1/3 की दर से डालनी चाहिए। कपास में बिजाई के 40-45 दिनों के बाद सूखी गुड़ाई के बाद स्टोम्प 30 ई.सी. की 1.25 लीटर मात्रा प्रति एकड़ को 200-250 लीटर पानी में घोल से उपचार के बाद सिंचाई करने से भी वार्षिक खरपतवारों का उचित नियन्त्रण हो जाता है।
हरा तेला की ऐसे करें रोकथाम
कपास फसल को लेकर रिसर्च कर रहे डॉ. ओमेंद्र सांगवान ने बताया कि हरा तेला की रोकथाम के लिए एक से दो छिडक़ाव 40 मि.ली. कोन्फीडोर या 40 ग्रा. एकतारा या 250-350 मि.ली. रोगोर 30 ई.सी. को 120 से 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ 15 दिन के अंतर पर छिडक़ाव करें। पहला छिडक़ाव तब करें जब 20 प्रतिशत पूरे विकसित पत्ते किनारों से पीले होकर मुडऩे लगें। सफेद मक्खी का भी यही इलाज है। यदि बालों वाली सूण्डी, पत्ता लपेट सूण्डी, कुब्बड़ कीड़े या चित्तीदार सूण्डी का भी आक्रमण जुलाई अंत से मध्य अगस्त तक हो तो 600 मि.ली. क्विनल्फॉस (एकालक्स) 25 ई.सी. या 45 मि.ली. स्पाईनोसैड (ट्रैसर) 75 एस सी या 1 लीटर नीम (अचूक/ निम्बीसीडीन) का प्रयोग करें। मीली-बग से बचाव के लिए खेतों के आसपास उगे खरपतवारों, विशेषकर कांग्रेस घास, कंघी बूटी, जंगली भरुट आदि को काट कर जला दें।