बदलती जलवायु और ग्लोबल वार्मिंग चिंता का विषय : कुलपति प्रोफेसर समर सिंह

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर कृषि वैज्ञानिकों के विचार
हिसार : 28 जुलाई
ग्लोबल वार्मिंग के कारण दिन-प्रतिदिन तापमान बढ़ रहा है जिसके कारण तूफान और समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है। साथ ही मीठे पानी के ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे पृथ्वी पर जीवन का खतरा मंडरा रहा है, जो बहुत ही चिंतनीय है। उक्त विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने ‘विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस’ पर व्यक्त किए।


फोटो -विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह


कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने बदलती जलवायु और ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे विश्व भर में पारिस्थितिक असंतुलन फैल रहा है। प्राकृतिक संसाधनों जैसे हवा, पानी, जंगल, जंगली जीवन, जीवाश्म ईंधन और खनिज मानव शोषण के कारण प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान और भावी पीढिय़ों की सुरक्षा के लिए स्वस्थ वातावरण बनाना आवश्यक है। इसलिए विश्व भर के लोगों में प्राकृतिक संसाधनों की बचत के महत्व को समझने के साथ-साथ इनके पुन:चक्रण करने,  संरक्षित करने और इसे नुकसान पहुंचाने के परिणामों को समझने के लिए जागरूकता बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के कृषि अपशिष्ट प्रबंधन हेतु नवाचार केंद्र, दीनदयाल उपाध्याय जैविक खेती उत्कृष्टता केंद्र इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने आम जन से आह्वान किया कि वे अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन की बजाय उनके संरक्षण को अधिक महत्व दे।



फोटो -अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत


विश्वविद्यालय के प्रयासों से बढ़ा प्रदेश में वृक्ष आवरण : डॉ. एस.के. सहरावत
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से स्थिति यहां तक पहुंच गई कि पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई। इसी को लेकर फ्रांस ने 1947 में एक गोष्ठी पर्यावरण संरक्षण पर आयोजित कर इसकी रूपरेखा बनाने की कोशिश की। 5 अक्तुबर  1948 में फ्रांस ने यूनेस्को के साथ मिलकर इसकी रूपरेखा तैयार की और आई.यू.पी.एन. (इन्टरनेशनल यूनियन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ नेचर) की फांन्टेनब्ल्यिू नामक जगह पर स्थापना की। उस समय डॉ. होमी जहांगीर भाभा उस गोष्ठी में शामिल थे। 1956 में इसका नाम बदल कर आई.यू.सी.एन. रखा गया जिसका वैश्विक मुख्यालय ग्लांड (स्विटजरलैंड) में बनाया गया। उन्होंने कहा कि चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के प्रयासों के कारण हरियाणा में वृक्ष आवरण बढ़ रहा है और लोग प्रकृति के संरक्षण के प्रति जागरूक हो रहे हैं।


फोटो -डॉ. आर.एस. ढिल्लो 


सतत् विकास के लिए प्रकृति को संरक्षित करना जरूरी : डॉ. आर.एस. ढिल्लो
वानिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.एस. ढिल्लो ने कहा कि वर्तमान में प्रकृति और पर्यावरण की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। यह समस्या केवल किसी एक देश या देशों के समूह तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने पूरे विश्व को प्रभावित किया है। प्राकृतिक दुनिया व विश्व को अनिश्चित प्रथाओं से बढ़ते खतरे का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए सतत् विकास को प्राप्त करने के लिए प्रकृति को संरक्षित करना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय का वानिकी विभाग प्राकृतिक संसाधनों की महत्वत्ता और प्रदेश के किसानों के हित को ध्यान में रखकर कई वर्षों से शोध कार्य कर रहा है। यह विभाग वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग और बदलती जलवायु को ध्यान में रखकर अखिल भारतीय कृषि वानिकी समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत विभिन्न कृषि वानिकी प्रणालियों जैसे मेड़ पर पेड़ व वृक्ष सुधार, आनुवांशिक पौध सामग्री का उत्पादन करने के लिए नर्सरी प्रौद्योगिकी पर शोध कार्य कर रहा है।