स्वदेशी की व्यापक अवधारणा और आत्मनिर्भर भारत - संदीप आजाद

यूनिक हरियाणा -देश में कोविड-19 की वैश्विक महामारी से ज्यादा अब देश के नागरिकों को अपनी रोजी-रोटी की चिंता ज्यादा सताने लगी है। चिंता जायज इसलिए है क्योंकि 12 मई को देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को दिए अपने संबोधन में लॉकडाउन 4.0 की घोषणा की है। 18 मई से देश में चैथा लॉकडाउन शुरू होगा। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री जी ने 20 लाख करोड के विशेष पैकेज का ऐलान भी अपने संबोधन में किया। संबोधन में प्रधानमंत्री जी ने एक बात को लेकर विशेष बल दिया वो थी आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी के प्रचलन को बढ़ाने की। स्वदेशी का जिक्र आते ही देश का एक अल्प ज्ञानी वर्ग तरह-तरह के कर्तकों से स्वदेशी की अलग तरह की परिभाषा घड़ने का प्रयास करने लगता हैकोई सरदार पटेल की सबसे उंचे बने स्टैच्यू पर सवाल उठाने लगता है तो कोई प्रधानमंत्री द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं पर। जब जब देश में कोई स्वदेशी की बात करता है तो में हमारी सोच केवल चाइनीज सामान तक आकर रूक जाती है और हम चीन से आने वाले सामान के बहिष्कार की बात करने लगते है। लोग तो ने यहां तक भी तर्क दे देते है कि क्यों न चाइनीज वस्तओं पर भारत में रोक लगा दी जाए या चीन से सामान भारत आए ही नहीं। लेकिन क्या ग्लोबल टेड पॉलिसि के तहत ऐसा कर पाना संभव है। यहां बात सिर्फ चीन तक ही सीमित नहीं अनेकों बहराष्ट्रीय कंपनिया है जिनका सामान हमारे देश में आता है जिसे हम अपने रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग करते है। यहां सबसे पहले हमें स्वदेशी की अवधारणा को ही समझना होगा। स्वदेशी हमारे स्वाधीनता संग्राम का मल मंत्र था। स्वदेशी महात्मा गांधी. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, वीर सावरकर, ' अरविंद घोष, भगतसिंह, जैसे सरीखे आजादी के महानायको का सपना था। स्वदेशी का आग्रह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हमे सर्वत्र दिखाई देता है। स्वदेशी की अवधारणा हमारे लिए नई नहीं है। स्वदेशी हमारे लिए • एक भाव है। अपनेपन का भाव। चाहे वह हमारे विचारों के प्रति हो चाहे एक भाव है। अपनेपन का भाव। चाहे वह हमारे विचारों के प्रति हो चाहें वा हमारी संस्कृति परम्पराओं एवं मूल्यों के प्रति हो। चाहे वह हमारे जीवन की दिनचर्या में शामिल अनेक प्रकार की वस्तओं के उपयोग का विषय हो। वर्तमान समय में कुछ लोग स्वदेशी को केवल वस्तुओं की सीमा में बांध देते है। यह कतई सही नहीं है। इसका व्यापक स्वरूप हमें - देखना होगा। स्वदेशी का व्यापक स्वरूप हम अपनी जीवन शैली, ज्ञान-विज्ञान, प्रोद्यौगिकि, आहार-विहार, चिकित्सा, शिल्प कौशल सहित कृषि के क्षेत्र में देख सकते है। भारत के महान लोगों व विचारकों ने स्वदेशी के भाव को हमेशा प्राथमिकता दी है। इसके पीछे कारण भी सपष्ट है क्योंकि जब तक हमारे अंदर स्वदेशी का भाव नहीं जगेगा तब तक हम आत्मनिर्भर र भारत का सपना नहीं देख सकते। स्वदेशी का भाव हमारी आत्मनिर्भरता " से सीधा जुड़ा है। इस वैश्विक महामारी के मुश्किल दौर में देश के प्रधानमंत्री ने एक बार फिर देश के नागरिकों में स्वदेशी का भाव जगाते हुए आत्मनिर्भर भारत बनाने के संकल्प दोहराया है। प्रधानमंत्री जी के इस संबोधन के बाद स्वदेशी की चर्चा ने एक बार फिर देश में जोर पकडा है। स्वदेशी अपनाने का आग्रह हर कोई करता हुआ दिख रहा है। इस मुश्किल दौर में स्वदेशी के रास्ते पर चलकर हम आत्मनिर्भर भारत बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकते है। आत्मनिर्भर भारत का सपना हमें गांवों से पूरा करना होगा। हमारे देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। जो या तो किसान या खेतिहर मजदूर है। देश की अर्थव्यवस्था में 17 फिसदा यागदान कृषि का है। कृषि का क्षेत्र भारत को 53 प्रतिशत आबादी का राजगार प्रदान करता है। किसानो के लिए खेता निरतर घाटे का सौदा बनता जा रहा हा वतमान समय म किसाना का दुदशा का चिता ता हर बनती जा रही है। वर्तमान समय में किसानों की दुर्दशा की चिंता तो हर किसी को है लेकिन किसानों को समृद्ध बनाने की दिशा में किए जा रहे शा म किए जा रह प्रयासा म प्रयासों में उतनी गंभीरता आज भी नजर नहीं आती। .. हमें किसानों को अपनी पारंपरिक खेती की तरफ ले जाते हुए उन्हें कृषि के अलावा इसके साथ जुड़ें अन्य व्यवसायों के लिए जैसे पश पालन, फुड प्रोसेसिंग, मधुमक्खी पालन, . हर्बल खेती सहित अन्य व्यवसायों के लिए प्रोत्साहित करना होगा. इसके लिए उनकी मदद करनी होगी। वर्तमान सरकार द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को ईमानदारी के साथ किसानों के खेतों तक पहुंचाना होगा। वश्विकरण के इस दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हमारे लघु उद्योगों १ व छोटे दुकानदारों को बहुत हद तक प्रभावित किया है। लघु और कुटिर । उद्योग स्वरोजगार की एक महत्वपूर्ण कडी है जो आत्मनिर्भर भारत बनाने में अपनी अह्म भुमिका निभा सकते है। देश का एक बडा युवा वर्ग जो खेती और नौकरी से दूर रह कर उद्यमकर्ता बनना चाहता है जिससे वह खुद तो सक्षम बने ही इसके साथ अन्य लोगों को भी रोजगार दे सके जिगार दे सके" वर्तमान सरकार ने लघु उद्योगों के लिए अलग से मंत्रालय बनाकर इस वत पर गभीरता से कार्य कर रही है। यहां जरूरी है कि सरकार द्वारा बनाई जा रही योजनाओं का लाभ हर उस जरूरतमंद तक पहुंचे जो इस दिशा में आगे बढना चाहता है। सुक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय को चालू वित वर्ष में 7572.20 करोड़ रूपए का बजट दिया गया है। वहीं इस महामारी के समय प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ के पैकेज में आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए 3 लाख करोड रूपए का बजट रखा गया है। मंत्रालय को एक सशक्त योजना के साथ उन लोगों तक पहंचना होगा जो वास्तव में स्वरोजगार की तलाश में है। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए के आम आदमी को किन-किन परेशानियों से गुजरना पड़ता है किसी से छिपा नहीं है। आत्मनिर्भर भारत . क सपन का पूरा करने के लिए विधानपालिका, कार्यपालिका और लोकतंत्र के चौथे सतम्भ मीडिया को अपनी भमिका ईमानदारी से निभानी होगी। भारत में रोजगार की आपार संभावनाएं है। आवश्यकता है इन संभावनाओं को पहचान कर उस दिशा में कार्य करने की। आज मेक इन इंडिया के नारे ने देश में खूब जोर पकडा है। अनेकों विदेशी कंपनिया आज भारत में अपनी मैन्युफैकचरिंग यनिट लगाने को तैयार और सरकार निरतर इसके लिए नई योजनाएं बना रही है ताकि देश के नागरिकों रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाला अधिकतर सामान मेक इन इंडिया मिल सके। मेक इन इंडिया के माध्यम से देश में रोजगार के नए अवसर उत्पन हो रहे है। देश की अर्थव्यस्था भी इसके माध्यम से रफतार पकड रही तो वहीं उद्यमि रही तो वहीं उद्यमियों को भी इससे बढावा मिल रहा है। मेक इन इंडिया के तहत सरकार का लक्ष्य विनिर्माण का योगदान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष चालू वित वर्ष में 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। आत्मानभर भारत बनाने की सबसे पहली शर्त यहीं होगी की हमे स्वयं पर विश्वास करते हुए स्वदेशी के भाव को अपने अंदर जागृत करना होगा। भारतीय लोग अधिक भावनात्मक लोग है उन्हें स्वदेशी का भाव अपने अंदर जगाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। स्वदेशी का भाव किसी भी समाज और देश का मजबूत आधार बनाता है। स्वदेशी में हमें गणवता को बढाने के लिए बेहतरीन तकनीकों का प्रयोग करना होगा ताकि भारत में बने उत्पादों पर विदेशी उत्पादों से ज्यादा विश्वास किया जा सके। स्वदेशी का प्रयोग बढेगा तो स्वरोजगार के अवसर उत्पन होंगे। यह वैश्विक महामारी का समय हमारे लिए स्वदेशी की व्यापक अवधारणा समझने और आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का सबसे उचित समय है। जिससे हर भारतीय को पहचाना होगा और इस दिशा में आगे बदना होगा। 


                                                                                               - संदीप आजाद