खेती की लागत को कम कर रही जीवाणु खाद, अधिक से अधिक किसान करें इस्तेमाल : गंगवा

डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा ने किया हकृवि के जीवाणु खाद प्लांट का निरीक्षण
हिसार, 14 सितंबर।
हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा ने कहा कि यूरिया, डीएपी तथा कीटनाशकों के विकल्प के रूप में जीवाणु खाद खेती की लागत को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इससे किसानों की आमदनी और जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ रही है। अधिक से अधिक किसानों को जीवाणु खाद का इस्तेमाल करना चाहिए।
डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा ने यह बात आज हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के जीवाणु खाद उत्पादक एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (सेंटर ऑफ बायो फर्टिलाइजर प्रोडक्शन एवं टेक्नोलॉजी) का निरीक्षण करते हुए कही। इस दौरान रतिया के पूर्व विधायक रामचंद्र कंबोज, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह, हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व चेयरमैन सतबीर सिंह वर्मा भी मौजूद थे।
डिप्टी स्पीकर ने बायो-फर्टीलाइजर लैब का निरीक्षण करते हुए यहां चल रही गतिविधियों की जानकारी ली। लैब विशेषज्ञों ने इस लैब से किसानों को मिल रहे लाभ के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एफपीओ हैबीटेट के साथ हुए समझौते के अंतर्गत यहां तैयार किए जा रहे जीवाणु खाद से बीजों को उपचारित किया जाता है। इसके अलावा कई किसान फसलों की सिंचाई के दौरान पानी के साथ भी इस खाद का उपयोग करते हैं। यूरिया खाद पर होने वाले 500 रुपये के खर्च के बदले केवल 150 रुपये की जीवाणु खाद अधिक कारगर साबित हो रही हैै। जिला के अनेक किसान इस खाद का उपयोग अपने खेत में कर रहे हैं और अपने खर्च को कम करते हुए जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा रहे हैं।
डिप्टी स्पीकर ने कहा कि हिसार की कृषि भूमि कपास की खेती के अनुकूल है और यह जिला का सौभाग्य है कि यहां कृषि विश्वविद्यालय है। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों को रोगमुक्त कपास की खेती के लिए अधिक शोध करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसान जीवाणु खाद का इस्तेमाल धीरे-धीरे बढ़ाकर डीएपी व यूरिया खाद की खपत में कमी कर सकते हैं। जीवाणु खाद का इस्तेमाल करके यूरिया की कमी को पूरा किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हकृवि के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों की फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए विश्वविद्यालय की ओर से नई-नई तकनीकों व किस्मों को विकसित किया जा रहा है। इसी कड़ी में फसलों के लिए वैज्ञानिकों द्वारा तैयार जीवाणु खाद को तैयार किया जाना महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि किसान जीवाणु खाद को अपनाकर न केवल 5 से 10 प्रतिशत फसल की पैदावार में बढ़ोतरी कर सकते हैं, बल्कि जीवाणु खाद के उपयोग से 15-25 प्रतिशत तक रासायनिक खादों के उपयोग में बचत तथा मिट्टी की पैदावार क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं।
इसके उपरांत डिप्टी स्पीकर ने विश्वविद्यालय स्थित पादव जैव प्रौद्योगिकी केंद्र का भी दौरा किया और वैज्ञानिकों से वहां उपयोग की जाने वाली तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल की। उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह से आहवान किया कि वे मौजूदा समय में किसान की खराब हुई फसल को ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय में शोध कार्यों पर बढ़ावा दें। प्राकृतिक आपदा व अन्य कारणों से किसान की फसल पूरी तरह तबाह हो जाती है, जिससे किसान की आर्थिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ता है। इसलिए ऐसी किस्मों व तकनीकों को बढ़ाएं ताकि किसानों का भला हो सके।
हकृवि के कुलपति प्रो. समर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय निरंतर किसानों के हितों को ध्यान में रखकर ही शोध कार्य कर रहा है। मौजूदा समय में खराब हुई नरमा कपास की फसल को लेकर भी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर इसके कारणों को जाना है। उन्होंने कहा कि किसान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से लगातार संपर्क बनाए रखें और अपनी फसलों में सिफारिश किए गए कीटनाशकों का ही प्रयोग करें। बिना सिफारिश किए गए कीटनाशकों के प्रयोग से कई बार किसान की फसल नष्ट हो जाती है और उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।
सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश गेरा ने बताया कि सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग का जीवाणु खाद उत्पादक एवं प्रौद्योगिकी केंद्र पिछले 50 वर्षों से जीवाणु खाद का उत्पादन व बिक्री कर रहा है। हमारा विभाग मुख्यत: सभी फसलों के लिए जीवाणु खाद तैयार कर रहा है जैसे कि एग्जॉटिका, फास्फोटीका, राहीजोटीका एवं बायोटिका प्रमुख है। इसके लिए वर्ष 1986 में हमारे विभाग को राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद, नई दिल्ली की ओर से राष्ट्रीय उत्पादकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य किसानों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित करना, किसानों को जीवाणु खाद के प्रति जागरूक, प्रशिक्षित एवं उपयोग करना, जीवाणु खाद का उत्पादन व न्यूनतम मूल्य पर वितरित करना है। बायोफर्टिलाइजर्स के दैनिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए केंद्र ने प्रति 200 लीटर की क्षमता के तीन फरमेंटर को स्थापित किया है। इसके अलावा जीवाणु खाद के बॉटलिंग के लिए एक अर्धचालक भरने और सील करने की मशीन को भी सेटअप किया गया है ।
उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में जीवाणु खाद के उत्पादन व बिक्री में काफी वृद्धि हुई है। पिछले 2 वर्षों में इस केंद्र ने लगभग 6 लाख लीटर जीवाणु खाद का उत्पादन व बिक्री की है और इस वर्ष यह लक्ष्य 10 लाख लीटर तक पहुंचाना है। अभी हाल के दिनों में जीवाणु खाद की बिक्री के लिए हमारे विश्वविद्यालय, हैफेड तथा हैबिटेट जिनोम ने करार साइन किया है ताकि जीवाणु खाद अधिक से अधिक किसानों को उपलब्ध कराई जा सके। इसका पूरा श्रेय हमारे कुलपति प्रोफेसर समर सिंह एवं अन्य अधिकारीगण हो जाता है जिनके सहयोग की वजह से यह सब संभव हो सका ।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. बी.आर. कंबोज, अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत, कृषि उपनिदेशक डॉ. बलवंत सहारण, एडवोकेट सुभाष कुंडू, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. राजवीर सिंह, सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश गेरा, डॉ. बलजीत सहारण, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. पुष्पा खरब, हैबिटेट जिनोम इंप्रूवमेंट प्राइमरी प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के अध्यक्ष सतीश सहरावत, डॉ. सुभाष काजला, जगदीश प्रसाद सहित विश्वविद्यालय के अनेक अधिकारी व कर्मचारी मौजूद थे।