पेड़ों की लुप्त होती प्रजातियों को बचाएं किसान : कुलपति प्रोफेसर समर सिंह

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बालसमंद अनुसंधान फार्म पर किसान-वैज्ञानिक गोष्ठी आयोजित


हिसार : 21 जुलाई 2020
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बालसमंद स्थित अनुसंधान फार्म पर मंगलवार को किसान-वैज्ञानिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह के दिशा-निर्देशानुसार किसानों को खरीफ फसलों व आधुनिक तकनीकों की जानकारी देने के उद्देश्य से इस गोष्ठी का आयोजन किया गया। वन महोत्सव के अवसर पर इस गोष्ठी का आयोजन वानिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.एस. ढिल्लो की देखरेख में किया गया। इस गोष्ठी में बालसमंद गांव के 22 किसानों ने भाग लिया जिसमें विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को खरीफ फसलों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया और किसानों द्वारा इससे संबंधित पूछे गए विभिन्न सवालों के जवाब भी दिए।


फोटो - वैज्ञानिक-किसान गोष्ठी के उपरांत किसानों को नीम के पेड़ भेंट करते वैज्ञानिक


कोविड-19 के चलते इस गोष्ठी में सामाजिक दूरी व मास्क का विशेष ध्यान रखा गया। किसानों को संबोधित करते हुए बालसमंद अनुसंधान फार्म के इंचार्ज डॉ. विरेंद्र दलाल ने कहा कि मौजूदा समय में कैर, रोहिड़ा, खेजड़ी जैसे वृक्षों की प्रजातियां लगभग विलुप्त हो रही हैं। ऐसे में इन प्रजातियों को बचाना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इन प्रजातियों की औषधीय महत्ता बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि पहले किसान अपने खेतों में हल चलाते समय ऐसे पेड़ों को बचा लेते थे लेकिन आजकल किसानों ने इन प्रजातियों के पेड़ों को जानकारी के अभाव में नष्ट कर दिया है। इसके अलावा किसानों को संबोधित करते हुए चारा विभाग से डॉ. सतपाल ने शुष्क क्षेत्रों में चारे की फसलों व खरीफ मौसम में लगने वाली फसल बाजरा, मूंग, ग्वार इत्यादि की वैज्ञानिक सस्य क्रियाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बालसमंद जैसे शुष्क क्षेत्र के लिए धामण घास, बाजरा व ज्वार चारे की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। धामण घास में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जिससे किसानों के दुधारू पशुओं का दूग्ध उत्पादन् बढ़ जाता है। रामधन सिंह बीज फार्म से डॉ. राजेश कथवाल ने बताया कि मानसून के दौरान वर्षा के कारण ग्वार व मूंग फसलों को बोने के लिए अगस्त माह का पहला सप्ताह उपयुक्त है। शुष्क क्षेत्रों में इस सप्ताह में इन फसलों को बोया जा सकता है। साथ ही ग्वार के बीज का उपचार स्ट्रैप्टोसाइक्लिन से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर के हिसाब से किया जाना चाहिए जिससे बैक्टिेरियल लीफ ब्लाईट को काफी हद तक रोका जा सकता है।  इसके अलावा किसानों को बहुउद्देशीय वानिकी पेड़ों की नर्सरी व ट्रांसप्लान्टेशन प्रबन्धन पर भी जानकारी दी गई। गोष्ठी उपरांत सभी किसानों को सामाजिक दूरी रखते हुए नीम के वृक्ष प्रदान किए गए।