मेरा पानी व मेरी विरासत’ को साबित करने में मददगार साबित होगी धान की सीधी बिजाई : प्रोफेसर के.पी. सिंह

हिसार : 9 जुलाई
प्रदेश में भूजल के गिरते स्तर व रिर्चाज को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए नारे ‘मेरा पानी व मेरी विरासत’ को सार्थक सिद्ध करने में धान की सीधी बिजाई मददगार साबित होगी। उक्त विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के.पी. सिंह ने किसानों से धान की सीधी रोपाई करने का आह्वान करते हुए व्यक्त किए। वे धान की सीधी बिजाई वाले क्षेत्रों का दौरा करने वाले वैज्ञानिकों से विचाार-विमर्श कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ‘मेरा पानी मेरी विरासत‘ व प्रवासी मजदूरों की समस्या को ध्यान में रखते हुए किसानों द्वारा काफी क्षेत्रफल में धान की विभिन्न किस्मों की सीधी बिजाई की गई है। उन्होंने बताया कि किसानों ने धान की सीधी बिजाई प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग व विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग की देखरेख में की है। प्रोफेसर के.पी. सिंह ने बताया कि फतेहाबाद जिले के रतिया, भूना, फतेहाबाद व टोहाना क्षेत्रों में लगभग 1200 एकड़ भूमि में धान की सीधी बिजाई की गई है।
वैज्ञानिकों की टीम ने किया खेतों का दौरा, समस्या निदान की दी सलाह
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. सतबीर सिंह पूनिया, कृषि एवं किसान कल्याण रतिया से डॉ. सुखविन्दर दंदीवाल, वैज्ञानिक डॉ. टोडर मल पूनिया व सस्य विज्ञान विभाग के वरिष्ठ तकनीकी सहायक मनजीत जाखड़ की टीम ने धान की सीधी बिजाई किए गए किसानों के खेतों का निरीक्षण किया। टीम सदस्यों ने बताया कि किसानों की फसल अच्छी खड़ी थी व किसान भी सीधी बिजाई करके खुश थे। सस्य विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. सतबीर सिंह पूनिया ने बताया कि केवल टोहाना के कुछ क्षेत्रों में बिजाई के तुरन्त बाद बारिश आने व करंड तोडऩे के लिए किसानों द्वारा बार-बार खेत की सिंचाई करने पर खरपतवारों की समस्या पैदा हूुई थी। इस क्षेत्र के काफी किसानों ने प्रवासी मजदूरों की आसानी की उपलब्धता होने से सीधी बिजाई वाले खेतों के कद्दू करके धान की पनीरी लगा दी है। इसके अलावा प्रदेश सरकार द्वारा धान की पराली व गेहूं का नाड़ जलाने पर प्रतिबन्ध लगाने की वजह से गेहूं व धान की फसल में सस्य क्रियाओं में बदलाव से कुछ खेतों में चूहों की समस्या ज्यादा भी देखने को मिली, जिसके नियंत्रण हेतु कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को विभिन्न रसायनिक व पारम्परिक विधियों के बारे में जानकारी दी गई।
खरपतवारों पर नियंत्रण जरूरी, ऐसे करें दवा छिडक़ाव
खेतों का दौरा करने के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि धान की सीधी बिजाई में खरपतवारों द्वारा नुकसान ही पैदावार में कमी का सबसे बड़ा कारण है। बिजाई के 25 -30 दिन बाद काफी खरपतवार उग जाते है। इसलिए किसान समय रहते इन खरपतवारों की पहचान करके खरपतवारनाशी द्वारा उनका नियंत्रण करें। अगर खरपतवारनाशियों के सही समय व मात्रा का उपयोग करने के साथ काश्त के सही ढग़ अपनाये जाएं तो खरपतवारों के सही रोकथाम हो जाती है तथा धान की पैदावार कद्दू करके लगाई गई धान के बराबर ही होती है। उन्होंने कहा कि खेत में बड़ा सांवक (मौंका), छोटा सांवक, डीला (मोथा) उग जाने पर किसान नोमिनी गोल्ड या तारक (बिसपाईरी बैक सोडियम), 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से छिडकाव करें। चीनी घास के लिए विवाया (पीनोक्सूलमन साईटैलोफोफ मिथाइल) 900 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से छिडक़ें। यह खरपतवारनाशक गांठ वाले डीले को भी मारता है। इसके अलावा घास जाति के खरपतवार जैसे कि मधाना, मकड़ा, चीनी घास, पैरा घास, तकड़ी घास आदि उगने पर राईसस्टार 6.7 प्रतिशत (फिनोक्साप्रोप पी ईथाईल) 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से छिडकाव करें। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर धान में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (मिर्च बुटी, तांदला, कोधरा, सांठी, कनकुआ, चौलाई, हुलहुल इत्यादि) व मोथा जाति (गांठ वाला मोथा, छातरी वाला मोथा, बड़ा काली गांठ वाला डीला) उग आए तो एलमिक्स 8 ग्राम या सनराइस 50 ग्राम या 2,4 डी 500 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से छिडक़ाव करें। सभी खरपतवारनाशियों का छिडक़ाव पहले दिन खेत में से पानी निकालकर 120 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ के हिसाब से फलैट फैन वाली नोजल द्वारा छिडकाव करें। अगर खेत में एक से ज्यादा नदीननाशकों का प्रयोग करना पड़े तो छिडक़ाव में एक सप्ताह का अन्तर जरूर रखें। कभी भी दो दवाइयों को मिलाकर छिडक़ाव न करें।