कपास की फसल में कीट व रोगों का एकीकृत प्रबंधन जरूरी : प्रोफेसर समर सिंह

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ऑनलाइन वेबिनार आयोजित, कृषि वैज्ञानिकों ने कपास के मुख्य रोगों के लक्षण व समाधान बताए
हिसार : 4 सितम्बर
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में पौध प्रजनन एवं आनुवांशिकी विभाग के कपास अनुभाग द्वारा एक ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार का मुख्य विषय वर्तमान में ‘कपास फसल में कीट और रोगों का एकीकृत प्रबंधन’ था। वेबिनार के शुभारंभ अवसर पर ऑनलाइन किसानों व कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने कहा कि कपास की फसल में बेहतर उत्पादन के लिए कीट व रोगों का एकीकृत प्रबंधन जरूरी है। उन्होंने कहा कि किसान फसल के मुख्य कीट व रोगों की पहचान करने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई दवाइयों का ही प्रयोग करें। इसके अलावा फसल में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बिना कीटनाशकों का छिडक़ाव नुकसानदायक हो सकता है। हाल ही में कपास की फसल का नष्ट होने में किसानों द्वारा बिना कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिश के फसल पर कीटनाशकों के मिश्रणों का प्रयोग करना एक कारण सामने आया है, जिससे कपास की फसल में नमी एवं पौषण के चलते समस्या बढ़ी है। वेबिनार के संयोजक व आनुवाशिकी एवं पौद्य प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार छाबड़ा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि इस वेबिनार का आयोजन कपास की फसल में आने वाले कीटों व बिमारियों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत की देखरेख में आयोजित किया गया। कपास वैज्ञानिक डॉ. ओमेन्द्र सांगवान ने मंच का ऑनलाइन संचालन किया एवं धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया। वेबिनार के दौरान संदीप, अक्षय कुमार,तेजराम बघेल, अनिल, दीपक आदि किसान व कृषि अधिकारियों डॉ. अरूण यादव, डॉ. अजय यादव, डॉ. कुसुम चौधरी, डॉ. मंदीप राठी आदि ने विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों से कपास की फसल में मौजूदा समय में आई समस्याओं को लेकर सवाल भी किए, जिनका कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बेहतर तरीके से जवाब दिया गया।
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह व सिफारिशों का रखें विशेष ध्यान
अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक डॉ. नीरज कुमार ने कहा कि कपास हरियाणा प्रदेश की एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। इसलिए किसानों को इस फसल में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर दी जाने वाली सलाह व कीटनाशकों को लेकर की गई सिफारिशों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कीट वैज्ञानिक डॉ. अनिल जाखड़ ने कपास में आने वाले कीटों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि कपास कि फसल में रस चूसने वाले कीड़ों में सफेद मक्खी, थ्रिप्स व हरा तेला मुख्य हैं जो फसल को नुकसान पहुचाते हैं। उन्होनें बताया कि इनमें सफेद मक्खी सबसे ज्यादा नुकसान पहुचाती है।  पौद्य रोग विशेषज्ञ डॉ. मनमोहन ने कपास फसल की बीमारियों के बारे में बताया। उन्होनें बताया कि कपास में मुख्य रोग जड़ गलन, पैराविल्ट, पत्ता मरोड़ रोग एवं टिंडा गलन रोग हैं। रेतीली भूमि में पैराविल्ट का प्रकोप ज्यादा होता है। सस्य वैज्ञानिक डॉ. करमल मलिक ने एकीकृत पोषक तत्व प्रबधंन पर अपना व्याख्यान दिया तथा विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई खादों एवं उर्वरकों की मात्रा के अनुसार फसल में डालने के बारे में चर्चा की।
सफेद मक्खी के अनुकूल है मौसम, किसान फसल की करें निगरानी
 कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि इस साल मौसम सफेद मक्खी के अनुकूल है, अगर समय पर आवश्यकतानुसार बारिश नहीं होगी तो इसका प्रकोप और भी बढ़ सकता है। इसलिए किसान अपनी फसलों का विशेष ध्यान रखें और समय-समय पर लक्षण दिखाई देते ही कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श करते रहें। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पत्तों पर छिडक़ाव के रूप में 2.5 किलोग्राम यूरिया प्रति 100 लीटर पानी या पोटैशियम नाइट्रेट(13-0-45) की 2.0 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से प्रति एकड़ में आवश्यकतानुसार बारी-बारी से प्रयोग करें। इसके अलावा सफेद मक्खी के लिए स्पाइरोमेसिफेन (ऑबरोन) 22.9 एस.सी. की 240 मिलीलीटर मात्रा या नीम आधारित कीटनाशक (निम्बिसीडीन/ अचूक) की 1.0 लीटर मात्रा या पाइरीप्रोक्सीफेन(डायटा)10 ई.सी. की  400 मिलीलीटर मात्रा को 200-250 लीटर पानी की दर से एक एकड़ में आवश्यकतानुसार बारी-बारी से पौधों पर निचली पत्तियों तक छिडक़ाव करें। यदि कपास के पत्ते ज्यादा काले दिखाई दें तो कॉपर ऑक्सिक्लोराइड की 600 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करें। पेराविल्ट बीमारी के संभावित इलाकों में कोबाल्ट क्लोराइड की 2.0 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से एक एकड़ में लक्षण दिखाई देने के 24 से 48 घंटों के अंदर छिडक़ाव करें। जहां सिंचाई या बारिश के बाद ज्यादातर पौधे मुरझा जाते हैं तो उन क्षेत्रों में इस बीमारी की संभावना होती है।