गांव सदलपुर ढ़ाणी में रुद्राभिषेक, सत्संग व वृक्षारोपण का आयोजन

जिसको सब चाहे वही शिव है: स्वामी परमात्मानन्द
- त्रिवेणी लगाने से मिलता है पीढिय़ों को पुण्य: स्वामी परमात्मानन्द -
हिसार, 04 अगस्त: गाँव सदलदपुर ढ़ाणी बड़ी छिपा वाली में श्रावण के अन्तिम सोमवार को भगवान शिव का रुद्राभिषेक, सत्संग तथा वृक्षारोपण का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता परमात्म धाम हिसार से पधारे आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी परमात्मा नन्द सरस्वती जी महाराज ने की। भक्त सुरजीत के आवास पर आयोजित कार्यक्रम में शिव शब्द पर प्रकाश डालते हुए कहा व्याकरण शास्त्र के अनुसार वश कान्ती धातु से शिव शब्द की उत्पत्ति हुई, जिसका अर्थ है, जिसको सब चाहे वही शिव है। जीवन में सब आनंद की इच्छा करते हैं आनंद ही शिव का स्वरूप है इसलिए शिव का एक नाम आनंद भी है। ‘शिवं कल्याणं करोति’ जो सबका कल्याण करे ऐसी कल्याणकारी भावना का नाम भी शिव है। शिव यानी जो सबको प्यारा हो।
महामण्डलेश्वर स्वामी परमात्मानन्द ने बताया श्रावण मास में जलाभिषेक का बड़ा महत्व है। वेद मंत्रों द्वारा भगवान शिव को जलधारा अर्पित करना साधक के लिए, आध्यात्मिक जीवन के लिए महाऔषधि है। शिव के अभिषेक का शास्त्रों में पवित्र महत्व बताया गया है। स्वामी परमात्मानन्द ने कहा कि जल में भगवान विष्णु का वास है। जल का नाम नार भी है इसलिए भगवान विष्णु को नारायण कहते हैं। जल से ही धरती का ताप दूर होता है। अत: जो श्रद्धालु भक्त भगवान शिव को जल चढ़ाते है उनके रोग, शोक, दु:ख दरिद्र सभी नष्ट हो जाते हैं। स्वामी परमात्मानन्द ने कहा शिव को महादेव इसलिए कहा जाता है वो देव, दानव, मानव सभी के द्वारा पूजे जाते हैं। श्रावण मास में शिव भक्ति का पुराणों में उल्लेख मिलता है इसी श्रावण मास में समुद्र मंथन किया था। मंथन के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन उस विषपान से महादेव का कंठ नीला पड़ गया इसलिए उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। उस विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवता ने जल अर्पित किया इसलिए शिवलिंग पर जल चढाने का विशेष महत्व है।
परमात्मानन्द ने कहा कि यजुर्वेद का एक मंत्र में मन को बड़ा ही प्रबल और चचंल कहा गया है। मन जड़ होते हुए भी सोते जागते कभी भी चैन नही लेता। जितनी देर हम जागते रहते हैं उतनी देर यह कुछ न कुछ सोचता हुआ भटकता रहता है। मन की इसी अस्थिर गति को थामने और दृढ़ करने के लिए भगवान शंकर हमें सावन जैसा मास प्रदान करते हैं। इसी सावन में  साधना कर साधक हर बाधाओं को पार कर आगे बढ़ता है। सावन सोमवार और शिव की उपासना सर्वथा कल्याणकारी है।
शिव मंत्र में एक अंश ऊर्जा देता दूसरा उसे संतुलित करता है। शिव की ये ऊर्जा अनन्त रूप धारण करती है 1 ‘ऊँ नम: शिवाय’ का महामंत्र शंकर की उस ऊर्जा को नमन है। जहाँ शक्ति अपने सर्वोच्च रूप में आध्यात्मिक किरणों से भक्तों के मन मस्तिष्क को संचालित करती है। जीवन के भव ताप से दूर कर भक्ति को प्रगाढ़ करते हुए सत्वोगुण, रजोगुण, तमोगुण से मुक्त कर मानसिक और शारीरिक रूप से विकार रहित स्वरूप प्रदान करती है। यह स्वरूप  निर्विकार होता है  जो परब्रह्म के साक्षात्कार का रास्ता तय करता है।
इस अवसर पर त्रिवेणी का वृक्षारोपण किया गया। इस पर स्वामी परमात्मा नन्द सरस्वती जी ने विशेष विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में एक त्रिवेणी अवश्य लगानी चाहिए जैसे जैसे ये त्रिवेणी बढ़ती है वैसे  वैसे आपकी सुख समृद्धि बढ़ती जाती है। एक पेड़ लगाने का फल 100 गायों के दान के समान है। यदि व्यक्ति अपने जीवन में एक त्रिवेणी लगाता है आने वाली कई पीढिय़ों को उसका लाभ प्राप्त होता है। इन तीनों के समान गुण होते है इसलिए इसे त्रिवेणी कहते हैं। ये तीनों पर्यावरण को सबसे अधिक शुद्ध  बनाते हैं। पीपल को शिव का ही पौधा कहा गया है इसकी पूजा होती है तथा यह 24 घन्टे ऑक्सीजन देता है। त्रिवेणी का वृक्षारोपण करते हुए कहा त्रिवेणी लगाना संसार का श्रेष्ठतम कार्य है त्रिवेणी साधारण वृक्ष नही है इसका आध्यात्मिक महत्व भी है।
परमात्मा नन्द ने बताया हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल, नीम, या बरगद लगाये तो साल भर में भारत  प्रदूषण मुक्त हो जाये। इन जीवनदायी पेड़ों को अधिक से अधिक लगाइये और भारत को प्राकृतिक आपदाओं से बचाइये।
इस अवसर पर हनुमान छिपा पूर्व प्रधान, ठाकर राम, सोहन लाल, बुधराम, गोपीराम, बृजलाल, मोहन लाल, रामकुमार, मुन्सीराम रामस्वरूप, तुलसी राम, कृष्ण कुमार, दानाराम, मांगे राम, सुभाष पटवारी, साधुराम, लालच्रक बनवारी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।