हरे चारे के साथ-साथ आमदनी बढ़ाने में भी सहायक ज्वार की फसल : प्रोफेसर के.पी. सिंह

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के.पी. सिंह ने किसानों को दी सलाह


हिसार : 8 जुलाई 2020
चारा फसलों में किसान ज्वार की बिजाई कर हरे चारे के साथ-साथ अपनी आमदनी का जरिया भी बढ़ा सकते हैं। इसके लिए किसानों को उन्नत किस्मों के अधिक उत्पादन देने वाले बीज ही प्रयोग करने चाहिए। उक्त विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के.पी. सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश की अर्थव्यवस्था में पशुधन एवं पशुपालकों का महत्वपूर्ण स्थान है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 70 से 80 प्रतिशत लोगों की आजीविका का साधन आज भी कृषि व पशुपालन है। इसलिए पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य व अधिक पशु उत्पादन के लिए गुणवत्तापूर्ण हरे चारे की उपलब्धता अत्यावश्यक है। चारा फसलों में ज्वार गर्मी व खरीफ मौसम की एक महत्वपूर्ण फसल हैै। हरे चारे के रूप में ज्वार पशुओं की पहली पसन्द है। उन्होंने कहा कि किसान अपने पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करने के साथ-साथ हरे चारे की बिक्री कर अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं, क्योंकि हरे चारे में ज्वार की डिमांड बहुत अधिक रहती है और यह प्रतिकुल परिस्थितियों में भी बोई जा सकती है।
इसलिए है ज्वार आदर्श चारा फसल
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि हरा व मीठा चारा, जल्द बढऩे की क्षमता और अधिक चारा उत्पादन का गुण ही ज्वार को आदर्श चारा फसल बनाता है। ज्वार का पौधा कठोर होने के कारण प्रतिकूल परिस्थितियां जैसे अधिक तापमान और सूखे को सहन करने की क्षमता रखता है। इसीलिए इसे कम पानी या शुष्क क्षेत्रों में भी हरे चारे के लिए लगाया जाता है। हरे चारे के अलावा इसे सूखा चारा (कड़बी), साइलेज व ‘हे’ के रूप में भी पशुचारे के लिए उपयोग किया जाता है। ज्वार के हरे चारे में पौष्टिकता की दृष्टि से प्रोटीन (7 से 10 प्रतिशत), फाइबर (30 से 32 प्रतिशत) और लिग्निन (6 से 7 प्रतिशत) पाए जाते हैं जो अन्य चारों की अपेक्षा इसकी पाचन क्रिया, स्वादिष्टता एवं पशु स्वास्थ्य को बनाए रखने में अधिक उपयोगी होते हैं। आनुवांशिकी व पौध प्रजनन विभाग के चारा अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. डीएस फोगाट, ज्वार विषेशज्ञ डॉ. सतपाल व ज्वार प्रजनक डॉ. पम्मी कुमारी ने बताया कि किसान ज्वार की उन्नत किस्में लगाकर किसान चारा उत्पादन के साथ-साथ अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।
ये हैं ज्वार की उन्नत किस्में:
ज्वार की फसल के लिए मुख्य उन्नत किस्मों में एच. जे. 541, एच. जे. 513, एच.सी. 308, एच.सी. 260, एच.सी. 171, एच.सी. 136 शामिल हैं। ये सभी किस्में यह 80 से 100 दिन में हरे चारे के लिए तैयार हो जाती हैं तथा इनकी हरे चारे की औसतन पैदावार 180-225 क्विंटल प्रति एकड़ तक है। इनके अलावा एस. एस. जी 59-3 किस्म को हरियाणा के सिंचित व मैदानी क्षेत्रों के लिए सिफारिश की गई है। यह मीठी व अच्छे गुणों वाली किस्म है जिससे लंबे समय तक हरा चारा मिलता रहता है, विशेषकर जब दूसरे चारों की कमी रहती है। यह किस्म मई से नवंबर तक 3-5 कटाई में 300 क्विंटल प्रति एकड़ हरे चारे की पैदावार देती है।
किसान ऐसे करें भूमि व खेत की तैयारी
आनुवांशिकी व पौध प्रजनन विभाग के चारा अनुभाग के ज्वार विषेशज्ञ डॉ. सतपाल ने बताया कि ज्वार की खेती वैसे तो सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है परन्तु अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए बढिय़ा है । खरपतवार नष्ट करने तथा फसल की अच्छी पैदावार के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए। सिंचित इलाकों में मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई और उसके बाद भी देसी हल से 2 जुताई (एक दुसरे के आर-पार) बिजाई से पहले अवश्य करनी चाहिए।
बिजाई का उचित समय, बीज की मात्रा और बिजाई का तरीका
चारा विभाग की ज्वार प्रजनक डॉ. पम्मी कुमारी ने बताया कि ज्वार की गर्मी की फसल 20 मार्च से 10 अप्रैल तक बो देनी चाहिए। यदि सिंचाई व खेत उपलब्ध ना हो तो बिजाई मई के पहले सप्ताह तक की जा सकती है। बह-कटाई वाली किस्में जैसे कि एस.एस.जी. 59-3 किस्म इस मौसम में लगाने से ज्यादा गर्मी वाले समय में भी पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो जाता है और यह किस्म अन्य किस्मों की तुलना में हरा चारा लम्बे समय तक उपलब्ध कराती है। खरीफ की फसल की बिजाई का सही समय 25 जून से 10 जुलाई है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई उपलब्ध नही है वहां खरीफ की फसल मानसून में पहला मौका मिलते ही बो देनी चाहिए।  ज्वार के लिए 20-24 किलोग्राम व सुडान घास के लिए 12 से 14 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ के हिसाब 25 से.मी. के फासले पर लाइनों में ड्रिल या पोरे की मदद से करें। बीज को बिखेरकर ना बोऐं। यदि किसी कारणवश छिडकाव विधि द्वारा बुआई करनी पड़े तो बीज की मात्रा में 15-20 प्रतिशत की वृद्धि आवश्यक है।
उर्वरक, खरपतवार व सिंचाई प्रबन्धन
आनुवांशिकी व पौध प्रजनन विभाग के चारा अनुभाग के ज्वार विषेशज्ञ डॉ. सतपाल ने बताया कि कम वर्षा वाले व बारानी इलाकों में बिजाई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड दें। सारी खाद बिजाई से पहले कतारों में ड्रिल करें । अधिक वर्षा वाले या सिंचित इलाकों में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन बिजाई के समय तथा 10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ बिजाई के एक महीने बाद भी डालेे। सुडान घास के लिए हर कटाई के बाद 10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ देनी चाहिए। जिन खेतों में फास्फोरस की कमी हो वहां 6 किलोग्राम शुद्ध फास्फोरस प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई से पहले डालें। ज्वार उगने के 15-20 दिन बाद या पहली सिंचाई के बाद, भूमि के बतर आने पर एक बार निराई-गुड़ाई करें, दूसरी गुड़ाई बरसात में जब खरपतवारों का प्रकोप बढ़ जाए तब करें।  इससे खरपतवार नियन्त्रण में रहते हैं तथा जमीन में नमी भी बनी रहती है। मार्च-अप्रैल में बोई गई फसल में पहली सिंचाई बिजाई के 15-20 दिन बाद तथा आगे की सिंचाई 20-25 दिन के अंतर पर करें। इस प्रकार लगभग 4-5 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। वर्षा ऋतु में बोई गई फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नही होती। यदि बरसात का अन्तराल बढ़ जाए तो आवयश्यकता अनुसार सिंचाई करें। अधिक कटाई वाली फसल में हर कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करें, इससे फुटाव जल्दी व अधिक होता है।
फूल आने पर करें कटाई
एक-कटाई वाली किस्मों की कटाई फूल आने पर करें। बहु-कटाई वाली चारा फसल में पहली कटाई बुवाई के 55-60 दिन बाद करें और तत्पश्चात प्रत्येक कटाई 40-45 दिन के अन्तराल पर करें। बहु कटाई वाली किस्मों की कटाई जमीन से 10-12 सैं.मी. ऊपर से करें ताकि फुटाव जल्दी हो।
विषैले तत्वों का प्रबंधन:
धूरिन (हाइड्रोसाइनिक अम्ल) -ज्वार में  धूरिन की अधिक सांद्रता पशुओं के लिए हानिकारक होती है। धूरिन अगर 200 माइक्रोग्राम /ग्राम से ज्यादा हो तो यह पशुओं के लिए घातक होता है। 30 दिन की फसल में इसकी सांद्रता ज्यादा होती है। इसलिए फसल को बिजाई के 50 से 60 दिन बाद ही काटना चाहिए, अगर बहूुत जरूरी हो तो एक सिंचाई करने के बाद ही कटाई करें और अन्य चारे के साथ उचित अनुपात में मिलाकर पशुओं को खिलाएं। अधिक सूखा एवं अधिक नत्रजन उरर्वकों का प्रयोग भी धूरिन की सांद्रता को बढ़ाता है। इसलिए इसकी विषाक्तता को कम करने  और पशुओं को इसके दुष्प्रभाव से बचाने के लिए ज्वार के हरे चारे को सूखे चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाएं।