हरे-चारे का साइलेज बनाकर इसकी कमी पूरी कर सकते हैं किसान : प्रोफेसर समर सिंह

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह ने किसानों को हरे-चारे की अनुपल्बधता के समय चारे की कमी को पूरा करने का बताया तरीका


हिसार : 21 जुलाई
खेती के साथ-साथ किसानों की आमदनी का साधन पशुपालन है। इसके लिए जरूरी है कि पशु को वर्ष भर पौष्टिक व संतुलित मात्रा में हरा व सूखा चारा मिलता रहे ताकि किसानों को पशु से अधिक उत्पादन मिल सके। इसलिए हरे-चारे का साइलेज बनाकर पशु को खिलाना एक बेहतर विकल्प है। उक्त सलाह चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह ने किसानों को दी। उन्होंने कहा कि किसान हरे-चारे की कमी के समय पशु को इसका अचार खिलाकर इसकी पूर्ति कर सकते हैं। विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि प्रारंभ से ही पशुधन का हमारे देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देश की कुल जोत के लगभग 4 प्रतिशत् क्षेत्रफल में ही चारा उगाया जाता है जबकि वर्तमान में 12 से 16 प्रतिशत क्षेत्रफल में चारा उगाने की आवश्यकता है। इसलिए हमारे देश में 36 प्रतिशत् हरे व 11 प्रतिशत सूखे चारे की कमी आंकी गई है। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से पशुओं की उत्पादकता कम रही है, जिनमें से एक मुख्य कारण आवश्यक व पौष्टिक आहार का ना मिलना रहा है।
पशु को साल भर मिलता रहेगा पौष्टिक चारा
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी व पौध प्रजनन विभाग के चारा अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. डी.एस. फोगाट ने बताया कि पशुओं से अधिक उत्पादन लेने के लिए सबसे जरूरी है कि उनको वर्ष भर पौष्टिक व संतुलित मात्रा में हरा व सूखा चारा दिया जाए।  हरे-चारे के अभाव में पशु कमजोर हो जाते हैं तथा उनका उत्पादन भी गिर जाता है। यदि पशुओं को पौष्टिक हरा-चारा मिलता रहे तो उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है तथा उनके आहार पर दाना भी कम खर्च होता है। इसलिए मानसून के मौसम में जब भी चारे का उत्पादन अधिक हो तो उसको संरक्षित करके रख लेना चाहिए ताकि वर्ष भर पौष्टिक चारा मिलता रहे।
साइलेज के लिए सही हरे-चारे का करें चुनाव
ज्वार विशेषज्ञ डॉ. सतपाल ने बताया कि अप्रैल से जून व नवम्बर-दिसम्बर के महीनों में हरे-चारे की काफी कमी हो जाती है। इसलिए कुछ एहतियात पहले से ही बरतने चाहिए ताकि किसान अपने पशुओं को पूरे वर्ष हरा-चारा उपलब्ध करवा सकें। उन्होंने बताया कि बरसात के मौसम, खरीफ व रबी में पशु पालकों के पास फालतू चारे उपलब्ध होते हैं। इसलिए इन दिनों में हरे-चारे को परिरक्षित करके रखा जाना चाहिए जिसे कमी के समय पशुओं को खिलाया जा सके। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि किसानों के पास खरीफ के हरे-चारे, ज्वार, मक्का, बाजरा व लोबिया तथा रबी के मौसम में बरसीम, जई, लुर्सन(रिजका) होते हैं। परिरक्षण करते समय इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि चारे की गुणवत्ता पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े तथा परिरक्षित चारे का उपयोग उन महीनों में किया जा सके, जब हरा-चारा उपलब्ध न हो। इसके अलावा खरपतवार वाले पौधों का भी अच्छा साइलेज बन सकता है। उच्च नमी वाले चारे को वायु रहित वातावरण में परिरक्षित करना ही साइलेज होता है। उन्होंने बताया कि हरे चारे का अचार बनाना ही साइलेज है।


फोटो -कुलपति प्रोफेसर समर सिंह 


ऐसे बनाया जाता है साइलेज
चारा अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. डी.एस. फोगाट ने बताया कि हरे-चारे को फूल आने के बाद दूधिया अवस्था में काट लेना चाहिए। इस चारे की कुट्टी कर लेनी चाहिए जिसकी लम्बाई एक इंच से ज्यादा न हो। इस चारे में शुष्क पदार्थ 30 से 40 प्रतिशत तक अवश्य होना चाहिए। अधिक सूखे चारे का साइलेज भली प्रकार बंध नहीं पाता और बीच में हवा रह जाने से फफूंदी लग जाती है। इसके अलावा पानी की मात्रा अधिक होगी तो साइलेज सड़ जाएगा। उन्होंने बताया कि साइलेज तैयार करने के लिए गड्ढे की लम्बाई, चौड़ाई तथा गहराई पशुओं की उपलब्धता पर निर्भर करती है। सामान्यत: एक घन फुट जगह में 15 किलो साइलेज आता है। उदाहरण के तौर पर एक गड्ढ़ा जिसकी लम्बाई 10 फीट, चौड़ाई 5 फीट व गहराई 6 फीट हो तो उसमें 50 क्विंटल हरे चारे का साइलेज बनाया जा सकता है।
दीवारों व धरातल की गोबर या मिट्टी से करें लिपाई
साइलेज बनाने वाले कच्चे गड्ढ़े को भरने से पहले उसकी दीवार व धरातल को पूरी तरह गोबर या मिट्टी से लीप देना चाहिए। मिट्टी व हरे-चारे के सीधे सम्पर्क को रोकने के लिए गेहूं का भूसा चारों तरफ व धरातल पर लगा देना चाहिए। हरा-चारा परतों में भरें व प्रत्येक परत को अच्छी तरह दबाना चाहिए ताकि हवा बाहर निकल जाए। ऊपर के भाग में विशेषकर दीवारों के आसपास, साइलेज बनाने की सामग्री को दबा दें। गड्ढे को दो-तीन फीट ऊंचा भरना चाहिए ताकि ऊपर का भाग दबने के बाद भी यह जमीन से ऊंचा रहे। इसके बाद साइलेज को हवा से बचाने के लिए गड्ढ़ा भरने के तुरंत बाद मिट्टी व गोबर से 5-6 इंच तक मोटी परत के द्वारा मुहरबंदी करनी चाहिए। साइलेज 45 से 50 दिनों में बन कर तैयार हो जाता है। हरे चारे की कमी के दिनों में इस उत्तम पौष्टिकता वाले चारे का प्रयोग किया जा सकता है।
ये हैं साइलेज बनाने के लाभ
डॉ. डी.एस. फोगाट के अनुसार साइलेज बनाकर हरे-चारे को लम्बे समय तक रखा जा सकता है जिससे पशुओं के लिए कम खर्च पर उच्च गुणवत्ता का चारा मिल सकता है। साइलेज बनाने वाली हरे-चारे खरीफ की फसल को जल्दी काटकर, रबी फसल की बुआई की जा सकती है। साइलेज बनाने से चारे के पोषक तत्वों को नुकसान नहीं होता और अच्छी प्रोटीन वाला चारा तैयार हो जाता है।