वर्ष 2020 का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण 21 जून को : डॉ. बलजीत शास्त्री

हिसार 19 जून : दिव्या वैदिक ज्योतिष संस्थान के अध्यक्ष डॉ. बलजीत शास्त्री ने बताया कि 21 जून को भारत में दिखाई देने वाला सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण होगा जो आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या को दिन रविवार मृगशिरा एवं आद्र्रा नक्षत्र, गंड तथा वृद्धि योग व मिथुन राशि में घटित हो रहा है। वर्ष 2020 में 21 जून को घटित होने वाला यह सूर्य ग्रहण दुर्लभ ग्रह स्थिति एवं विशेष खगोलीय परिस्थिति में घटित होगा। यह सूर्य ग्रहण कंकणाकृति के आकार में होने से यह चूड़ामणि सूर्य ग्रहण होगा। ग्रहण का समय भारतीय समयानुसार सुबह 10 बजकर 20 मिनट से दोपहर 1 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। इसका सूतक काल 12 घंटे पहले यानि 20 जून को रात्रि 10 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर ग्रहण समाप्ति काल तक रहेगा। सूतक काल के दौरान मंदिर में प्रवेश करना, मूर्ति को स्पर्श करना निषेध है। इस दौरान कोई भी क्रियात्मक पूजा-पाठ ना करें। इसमें बैठकर केवल भजन एवं जाप करें।
डॉ. बलजीत शास्त्री ने बताया कि इस ग्रहण के समय 6 ग्रह वक्री रहेंगे और सूर्य भी कर्क रेखा पर होगा। आषाढ़ माह कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन यह ग्रहण मिथुन राशि में राहु, सूर्य-चंद्रमा को पीडि़त कर रहा है। मंगल जल तत्व की राशि मीन में है और मिथुन राशि के ग्रहों पर दृष्टि डाल रहा है। इस दिन बुध, गुरु, शुक्र और शनि वक्री रहेंगे और राहु-केतु हमेशा वक्री ही रहते हैं। इन 6 ग्रहों की स्थिति के कारण यह सूर्य ग्रहण और भी खास होगा। देश में इस ग्रहण का अशुभ असर दिखेगा। ज्योतिष ग्रंथ बृहद संहिता के अनुसार यह ग्रहण आर्थिक हानि व मानसिक तनाव को बढ़ावा देगा।
डॉ. बलजीत शास्त्री ने बताया कि ग्रहणकाल के दौरान घर से बाहर ना निकलें और कोरोना के संकट को ध्यान में रखते हुए तीर्थों पर ना जाकर घर में ही तीर्थों का ध्यान करके पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें व श्रद्धानुसार दान करें। मुहूर्त चिंतामणी ग्रंथ के अनुसार ग्रहण के दौरान सोना, यात्रा करना, भोजन करना, लकडिय़ां काटना, फूल तोडऩा, बाल एवं नाखुन काटना, कपड़े धोना, सिलाई व कामासक्त कार्य करना निषेध है। विशेषकर गर्भवती महिलाएं कोई भी धारदार एवं नुकीली वस्तुओं का प्रयोग ना करें और अपने पास एक नारियल व कुशा रखें। उन्होंने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना से मुक्ति हेतु हृदय स्त्रोत व सूर्याष्टक स्त्रोत का पाठ करें। डॉ. बलजीत शास्त्री ने बताया कि पराशर स्मृति के अनुसार जन्म कुंडली में सभी दोषों को दूर करने के लिए ग्रहण काल की समाप्ति के उपरांत गऊ सेवा सर्वोपरि है।