हरियाली के प्रहरी ओमप्रकाश कादयान

हिसार (प्रवीन कुमार)- पिछले कई दशक में मानव दिमाग की अदुभुत क्षमताओं से विज्ञान के बल पर मनुष्य ने अभूतपूर्व विकास किया है लेकिन विज्ञान के इस मशीनी युग में आदमी भी मशीनबन गया है।वह विज्ञान के बल पर इतना सुख चाहता है कि उसे हर एशो आराम आसानी से प्राप्त हो जाए। इतना ही नहीं भौतिक साध्न जुटाने, अधिक से अधिक पैसा कमाने के वशीभूत वह इतना स्वार्थी भी हो गया है कि उसे केवल अपने सुख व सुविधओं की चिन्ता है। इसके लिए चाहे दूसरों को कितने ही कष्ट क्यों न देने पड़ें। उसे देश-दुनिया, समाज की कोई चिन्ता नहीं। यहां तक कि वह अपनी संस्कृति व प्रकृति को भूल रहा है। जिस प्रकृति ने उसे सब कुछ दिया उसे भुला ही नहीं दिया बल्कि उसे तहत-नहस करने में जुटा है। वह भूल गया है कि पेड़-पौधे ही नहीं रहेंगे तो हम कहां बचेंगे ऐसा नहीं है कि सभी मनुष्य एक जैसे हैं। इसी इन्सानी भीड़ में कुछ ऐसे प्रकृति प्रेमी व पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हृदय वाले कर्मठ इन्सान भी हैं जिन्हें जल, जंगल और पर्यावरण की बेहद चिन्ता होती है तथा अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा पर्यावरण संरक्षण में लगा देते हैं। ऐसे ही चन्द इन्सानों में एक नाम है डॉ. ओमप्रकाश कादयान। वैसे ओमप्रकाश कादयान मूल रूप से एक शिक्षक, साहित्यकार हैं, चित्राकार और छायाकार हैं, किन्तु इन सबसे पहले इन्सान हैं। और इन्सान के नाते पर्यावरण की चिन्ता करना उनका नैतिक कत्र्तव्य है। डॉ. कादयान का कहना है कि प्रकृति ने हमें वो सब कुछ दिया है जिसकी हमें आवश्यकता होती है। प्रकृति ने हमें पानी, शुद् हवा, पेड़-पौधे, फ ल-फूल, छाया, अनाज, हरे भरे जंगल, नदियां, झीलें, बादल-बरसात जड़ी-बूटियां सब कुछ उपहार स्वरूप दिया है, किन्तु अपने स्वार्थ वश्ंा उसी प्रकृति को ही हम तहस-नहस कर रहे हैं जो हमारे लिए प्राणाधर है। डॉ. ओमप्रकाश कादयान ने पिछले 22 वर्षों में 15 हजार से अधिक पौधे लगाये हैं या लगवाए हैं। विद्यालय प्रांगण, अस्पताल, मन्दिर प्रांगण, जोहड़ों के किनारे, आंगनों में तथा खेतों में। डॉ. कादयान ने बताया कि वे हर वर्ष 300 से 800 तक पौधरोपण करवाते हैं। जहां ये पढ़ाते हैं उस विद्यालय के छात्रा-छात्राओं को हर वर्ष दो-दो, तीन-तीन पौधे बांटकर आंगण, खेत-खलिहानों में लगवाते हैं, वहां जाकर देखते हैं तथा उनसे पूछते रहते हैं कि पौधे कितने बड़े हो गए, कोई सूख तो नहीं गया। उनमें पानी-खाद डालते हो या नहीं। इन्होंने काजलहेड़ी के जम्भेश्वर मन्दिर प्रांगण में तथा मन्दिर के पीछे खाली पड़ी जमीन में करीब 500 पौधे लगवाए जो आज एक जंगल की तरह फ ले हुए हैं। राजकीय उच्च विद्यालय, काजलहेड़ी में पांच वर्ष पूर्व जहां कुछ बबूल के पेड़ छोड़ कर कोई पेड़ नहीं था, उसमें करीब 500 पौधे लगाकर उनके संरक्षण का जिम्मा लेकर, पाल-पोस कर बड़े किये जो आज दरखतों का रूप ले चुके हैं। आज वहां भरपूर हरियाली है। इस हरियाली अभियान में समय-समय पर इनके चित्रों में अमरजीत सिंह, प्रवीण कम्बोज व नवल सिंह ने भी सहयोग दिया। राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मोहम्मद पुर रोही में पौधा रोपण करवाया, हिसार मारबल सिटी, बेरी, झज्जर, रोहतक, फ तेहाबाद, टोहाना, सिरसा सहित अन्य अनेक स्थानों तथा केरल, हिमाचल, उत्तराखण्ड, राजस्थान में भी कुछ पौगे लगाए। इन्होंने काफ ी संख्या में पफलदार, फूलदार व औषध्ीय पौधे भी लगाए। इनका मानना है कि हम केवल छायादार पौध्े ही न लगाएं। फलदार व औषध्ीय पौधे छाया के साथ-साथ फल-फूल भी देते हैं जिससे हमारी कई अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। अगर हम हर जगह पफलदार पौध्े लगाएं तो उन व्यक्तियों या बच्चों को भी पफल मिलेंगे जिन्हें रोटी भी मुश्किल से नसीब होती हैं। डॉ. कादयान पौधरोपण के लिए कई बार संस्थाओं का सहयोग भी ले लेते हैं। इनका मानना है कि हम अनेक तरह के पफल खाकर गुठलियों को कूड़े के ढेर में पैफंक देते हैं, अगर हम इन गुठलियों को एकत्रा कर मोटरसाइकिल, कार, बस या ट्रेन में सपफर करते हुए रास्ते में पैफंकने की आदत डालें तो हर वर्ष बरसात में इन रास्तों पर लाखों नहीं बल्कि करोड़ों पेड़ उगकर भरपूर हरियाली देंगे तथा खाने को पफल मिलेंगे। फ ल इतने होंगे कि  फलों की कमी ही नहीं रहेगी। इस छोटे से प्रयास से हम पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं। कादयान ने बताया कि मैं खुद कई वर्षों से ऐसा कर रहा हूँ। इसी तरह पक्षियों के संरक्षण के लिए ये पेड़ों पर पानी के सकोरे टांगने की भी व्यवस्था करते हैं, इसके लिए ये मित्रों का सहयोग लेते हैं। जल संरक्षण को लेकर इन्हें भविष्य की बड़ी चिन्ता है। इसलिए इन्हें जहां जल का व्यर्थ बहाव होता दिखता है तो ये पानी व्यर्थ बहाने वालों को समझाते हैं। जल, पर्यावरण, वृक्ष बचाने, इनके प्रति जागरूकता पैफलाने का प्रयास भी ये कई माध्यमों से करते हैं। मौका मिलते ही शिक्षण संस्थाओं में अपने आख्यानों से जल व वृक्ष बचाने की बात कहते हैं। ये विद्यालयों में कविता, पैंटिंग, भाषण, निबन्ध आदि प्रतियोगिताएं करवा कर, बच्चों को ईनाम बांटकर उनमें पर्यावरण के प्रति रूचि जगाते हैं। उन्हेंं शुद् जल व पौधें का महत्त्व बताते हैं। इनके आलेख भी पत्रा-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। इन द्वारा बनाई पैंटिंग में भी बिगड़ते पर्यावरण की चिन्ता स्पष्ट झलकती है। एक यायावर छायाकार होने के नाते ये अपने कैमरे के माध्यम से छायाचित्रों द्वारा वृक्षों की उपयोगिता व आवश्यकताओं को तथा बिगड़ते पर्यावरण के दुष्परिणामों को दिखाते हैं। समय-समय पर हरियाणा व हरियाणा से बाहर इन द्वारा लगाई चित्रा व छायाचित्रा प्रदर्शनियों से भी ये प्रकृति के सौंदर्य, उसके प्राणाधर स्वरूप को दर्शाते हैं ताकि आम आदमी प्रकृति से जुड़ें तथा पेड-पौधें व जल के महत्व को समझें एवं उसका विनाश रोकें। मोहम्मद पुररोही के स्कूल के प्राचार्य रोहताश कुमार कडवासरा ने बताया कि डा. काद्यान को प्रकृति से बहुत लगाब है मौका व स्थान मिलते ही ये पेड़ लगा देते है और उनकी देखभाल भी करते है।
खाली पीरियडों में ये बच्चों की तरह पेड़-पौधें की देखभाल करते हैं। सी.आर.पी. के
तहत बच्चों से कत्ते, घास-फूस या लकड़ी के घोंसले बनवाकर पेड़ों पर टांगते हैं। इनके टागें
घौंसलों में हर साल बहुत से पक्षी अण्डे देकर, चूजों को बड़े कर उड़ते देखा है। इनके हाथ से
लोग पौध्े ही नहीं बल्कि टहनियां भी लग जाती हैं। इन्होंने शहतूत, फा इकस, बड़, बकाण,
पीपल, आंवला की भी बहुत टहनियां नमी वाली जमीन में गड़ोकर हरी होकर पेड़ बनते देखे हैं। डॉ. ओमप्रकाश कादयान का कहना है कि जब मैं पौध लगाता हूँ तो उन्हें बच्चों की तरह
पालता हूँ। दो-तीन वर्ष बाद उन्हें अपना मित्रा समझता है तथा बहुत बड़ा होने पर बड़े दरखतों को मैं अपना शिक्षक, रक्षक व माता पिता के समान पोषक समझता हूँ। कादयान का कहता है कि मैं पेड़ों के स्वभाव व पीड़ा को समझता हूँ। मैं पेड़-पौधें से बातें नहीं करता, किन्तु अनेक बार महसूस अवश्य होता है, जैसे पेड़ मुझे कुछ कहना चाहते हो, मैं भी उनसे। शायद ये एक अनबोल संवाद होता है मेरे और पेड़ों के बीच जो रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता, अनुभव किया जा सकता है। कादयान का कहना है कि जब मैं पेड़-पौधें को हरा भरा देखता हूँ तो शारीरिक व मानसिक थकान दूर हो जाती है। शान्ति मिलती है। डॉ. कादयान ने कहा कि पीपल, बड़, आंवला, बेल, अशोका, त्रिवेणी आदि अनेक पेड़ों को हम उनके गुणों के कारण पूजते हैं, उन्हें देवता मानते हैं, किन्तु क्या कभी इनको पूजने वालों ने इनमें से कोई पेड़-पौध अपने हाथ से लगाया है अगर नहीं तो कैसी पूजा है पेड़ कम होर हे हैं, हम निश्चिन्त हैं। पेड़ों की असली पूजा नए पेड़ लगाने में है, ना कि 20-25 या 100 साल के भारी भरकम पेड़ पर पानी चढ़ाने से। नये पेड़ लगाकर उन पर पानी चढ़ाए जिनकी जड़ें अभी तक ज्यादा गहरी न गई हों पानी तक। डॉ. कादयान ने बताया कि बढ़ता प्रदूषण, फैलते उद्योग, कम होती हरियाली, फ सलों पर रसायनिक छिड़काव, किसानों द्वारा जलाए जा रहे फ सलों के अवशेष, जहां हमें जीवन में, शरीर में, सासों में जहर घोल रहे हैं, वहीं जीव-जन्तुओं की मौत का कारण बन रहे हैं। किसानों के मित्रा कीट मर रहे हैं। नए पेड़ नहीं पनपते। ये असन्तुलन भयंकर जलवायु परिवर्तन ला रहा है। डॉकादयान बढ़ते कंकरीट के जंगलों के कारण, पृथ्वी पर बढ़ते बोझ, कटते वृक्ष, सिकुड़ते जंगल, बंजर होती व गर्माती ध्रती, सूखती तथा दूषित होती नदियां, नकारा होते जोहड़-सरोवरों, कम होता पेयजल, घटता भूजल स्तर, बिगड़ता पर्यावरण सन्तुलन, विलुप्त होते पंछियों, पिंघलते ग्लेशियारों से चिन्तित हैं। डॉ. ओमप्रकाश ने बताया कि पहले हमारे बुजुर्ग जोहड़, तालाबों पर, सामूहिक जगह पर, चौपालों में, आंगन में, खेत के डोलों पर खूब पेड़ लगाते थे। हर कहीं हरियाली होती थी। अब ये परम्परा छूट रही है। पानी कम होते हुए भी हमने जोहड़, तालाबों, कुओं को नकार दिया। अब वहां पेड़ों की हरियाली भी नहीं दिखती। हरियाली के साथ ही रौनक भी गायब हो गई। हमने धरती के अलंकार को छीनकर वीरान कर दिया। हरियाली छीन कर, अपनी ही ध्रती को नंगा कर
दिया। यही कारण है कि मौसम बदल रहा है। जीव-जन्तु गायब हो रहे हैं। ध्रती की उर्वरता घट रही है। समुद्र उपफ ान पर है। अनेक बीमारियां आ रही हैं। पेड़ कम होने की वजह से सांसे कम हो रही हैं। शुद् हवा का अभाव है। इसलिए हम कुछ ऐसा करें कि पेड़ कम काटें तथा जंगल बढ़े, हरियाली बढ़े। हरियाली बढ़ेगी तभी खुशहाली कायम रहेगी। अगर आप चाहते हैं कि हमें जीने के लिए शुद् हवा, हरियाली, प्राकृतिक सौन्दर्य, सन्तुलित वातावरण मिलते रहें तो जीवन में हर व्यक्ति ने कुछ पौध्े लगाने चाहिए। कम से कम एक पौध तो अपने नाम पर। एक पौध अपने बच्चे के नाम। अपने माता-पिता के नाम, अपने प्रिय या अपने जन्मदिन को यादगार व सार्थक बनाने के लिए पेड़ लगाएं। किसी शुभ अवसर पर पेड़ लगाएं। दूसरों को भी पौध्े भेंट करें। याद रहे कि पौध लगाने से अध्कि आवश्यक है कम से कम तीन वर्षों तक उसका संरक्षण करना, पानी डालना। आपकी पौधें से बेरूखी कहीं आने वाली पीढिय़ों को नरक में न ध्केल दे। आप अपने बच्चों के लिए अध्कि से अध्कि सम्पत्ति, जायदाद छोड़ कर जाना चाहते हों, किन्तु क्या कभी सोचा है कि जो सबसे जरूरी है यानी शु हवा हरा भरा वातावरण, क्या इस बारे में कभी सोचते हो। इसलिए अपने थोड़े स्वार्थ कम करके आने वाली पीढिय़ों व पूरे जीव-जगत के लिए हमने शु( हवा का प्रबन्ध् करना चाहिए। कादयान ने कहा कि पेड़ हमें बहुत कुछ देते हैं। वृक्ष विहीन पृथ्वी, निर्जन, निर्जीव तथा मरूस्थल हो जाएगी। हम ये भूल जाते हैं कि वृक्षों के बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है। सभी तरह की खुशहाली, अध्कितर जरूरत की चीजें हमें पेड़ों से मिलती हैं। वृक्ष किसी से भेद भाव नहीं करते ये अमीरी, गरीबी, जात-पात, ध्र्म सभी से उफपर उठकर सभी के लिए अपना सर्वस्व लुटाते हैं। पेड़ अगर आपके घर के साथ लगते दुश्मन के घर भी हो तो वह आपको छाया व पफल देगा, क्योंकि पेड़ सभी के मित्रा होते हैं। डॉ. ओमप्रकाश कादयान कहते हैं कि हमने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लए वृक्षों का सफाया कर पक्षियों का भी हक छीना है। खुले आकाश में उडऩा व वृक्षों पर आशियाना बनाना उनका मौलिक अध्किार है। हम थोड़ा बहुत पक्षियों के दाना-पानी व आशियानों की भी सोचें। पौध लगाकर, उसको बड़ा करते समय हम उसमें अपने बचपन की यादें खोज सकते हैं। जवानी की उफ र्जा ग्रहण कर सकते हैं, भविष्य की खुशहाली खोज सकते हैं।  डॉ. कादयान ने कहा कि हम जीवन भर पेड़ों से प्राप्त वस्तुओं का भोग, उपयोग करते हैं। पफल, पूफल, पत्ते खाते हैं। उनसे बनी दवाइयां खाते हैं। उन द्वारा छोड़ी आक्सीजन लेते हैं। प्रत्येक परिवार पेड़ों से बनी लकड़ी व कपड़ों का प्रयोग करता है। उन से बने कागजों का उपयोग जीवन भर करते हैं। हर आदमी अपने जीवन में पता नहीं कितने पेड़ों का उपयोग कर जिन्दा रहता है, किन्तु हम अपने जीवन काल में पेड़ लागते कितने हैं कुछ गिनती के व्यक्तियों को छोड़कर क्या जीवन भर नहीं सोच पाते कि जिन पेड़ों से हमारा अस्तित्व है, हमारी सांसे कायम हैं। अपने हाथों से एक पौध तो रोपकर उसकी देखभाल कर लें। कादयान का मानना है कि अब वो समय आ गया है कि एक-एक पेड़ से काम नहीं चलेगा बल्कि खाली पड़ी जमीनों पर जंगल के जंगल उगाने होंगे। अगर इनसान कोशिश करे तो 15-20 वर्षों में भारी जंगल उगा सकते हैं। कादयान ने कहा कि हरियाणा की कुछ खापों ने मिलकर पानी बचाने तथा पानी के महत्त्व के प्रति आम आदमी को जागरूक करने की पहल की है। अगर ये पहल सार्थक हो जाती है तो ये बहुत बड़ा कार्य होगा। सबसे ज्यादा किसानों को पानी व पेड़ों को बचाने के प्रति प्रोत्साहित करना होगा। पेड लगाने सरक्षण के अभियान मे इनकी पत्नी डा. सुमन काद्यान भी विषेश सहयोग करती है।  हम अपने स्वार्थ में इतने अन्धे हो गए कि नहीं सोच पाते कि जंगल हैं तो जीवन है। जल है तो कल सुरक्षित है। जीवन जन्तु हैं तो हमारा भी अस्तित्व है। इनके बिना हम भी नहीं। मां हमें जन्म देती है, पालती-पोषती है, बड़ा करके हममें संस्कार डालती है। एक मां ध्रती है जो सबकी माता है, हमारी माँ की भी माँ। आज ध्रती माँ संकट में है और इस संकट का कारण है हमारा स्वार्थ। हम ही इसे बचा सकते हैं, पिफ र से इसे हरियाली की चादर ओढ़ाकर। इस ध्रा के सुख हम सबने लूटे हैं, बांटे हैं। इस ध्रती की पीड़ा भी हम सबने बांटनी होगी। हम जितना भोगते हैं उतना जोडऩा भी पड़ेगा। नहीं तो एक दिन ऐसा होगा जब भोगने के लिए कुछ नहीं बचेगा, भोगने वाला भी नहीं।